चिलचिलाती धूप,
दूर- दूर तक सन्नाटा।
खामोशियों को चीरती ,
गर्म हवाएं ,उड़ती धूल।
नंगे पांव , बदन पर पसीना ,
सूखे होठ, वो चलते जा रहा था।
शायद कहीं कोई छाँव मिल जाए,
भला रेगिस्तान में कहीं छाँव होती है?
वो निकल पड़ा रेगिस्तान से कहीं दूर,
जहाँ वो शीतलता को महसूस कर सके।
और बच सके उस मृगमरीचिका से,
जिसने न जाने कितने मृगों को भ्रमाया है।